झीरम घाटी हत्याकांड–दरभा घाटी नक्सली हमला

झीरम घाटी हत्याकांड–दरभा घाटी नक्सली हमला


झीरम घाटी हत्याकांड

बस्तर अपने प्राकृतिक सौंदर्य, संपदा, कला और संस्कृति के लिए विश्व विख्यात है लेकिन लाल आतंक के बढ़ते प्रभाव के कारण यह हरी-भरी भूमि अक्सर लाल होती रही है।

यह क्षेत्र रेड कॉरिडोर के अंतर्गत आती है जिस कारण यहां के नेता, अधिकारी, और कर्मचारी अक्सर नक्सलियों निशाने पर रहते हैं।

साल 2013 में विधानसभा चुनाव के दौरान नक्सलियों ने एक फरमान जारी किया था कि ‘हमारे एरिया में किसी भी पार्टी द्वारा कोई भी रैली ना किया जाए नहीं तो अंजाम बुरा होगा’। लेकिन इस फरमान को ज्यादा सीरियसली लिया नही गया।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले थे बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता में काबिज होने के लिए विकास यात्रा कर रही थी, कांग्रेस 10 साल बाद सत्ता में वापसी करने के लिए एड़ी चोटी की जोर लगा रही थी और इसके लिए पूरे प्रदेश में परिवर्तन यात्रा कर रही थी।

इसी सिलसिले में परिवर्तन यात्रा की एक रैली 25 मई को बस्तर के सुकमा जिले में थी। इस रैली में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के शीर्ष नेता नंद कुमार पटेल (तत्कालीन पीसीसी अध्यक्ष), इनके बेटे दिनेश पटेल, राजनांदगांव विधायक उदय मुदलियार, बस्तर टाईगर के नाम से प्रसिद्ध महेंद्र कर्मा, बस्तर क्षेत्र के विधायक कवासी लखमा, फूलों देवी नेताम, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी तथा अन्य बड़े नेता शामिल थे।

मां दंतेश्वरी का आशीर्वाद लेने के बाद रैली परिवर्तन यात्रा के लिए सुकमा निकली। इंटेलिजेंस द्वारा इन जैसे रैलियों पर खतरा होने की बात कही जा रही थी लेकिन इससे पहले बीजेपी वहां विकास यात्रा कर चुकी थी।

सुकमा में कार्यक्रम के दौरान कोई अप्रिय घटना नहीं हुई कार्यक्रम अच्छे से संपन्न हुआ। कार्यक्रम के बाद लगभग 25 से भी ज्यादा गाड़ियों का काफिला 200 से भी ज्यादा लोगों के साथ नेशनल हाईवे से जगदलपुर के रास्ते केशलूर जाने के लिए निकली।

तभी दरभा और झीरम घाटी के बीच  कुछ लोगों को लगा की जैसे उनके गाड़ियों पर कोई कंक्रीट से मार रहा है, कुछ सेकंड तक तो लोगों को कुछ समझ नहीं आया लेकिन जैसे ही उनकी नजर घाटी पर पेड़ों के पीछे छिपे बंदूक ताने नक्सलियों पर पड़ी लोगों के होश उड़ गए।

गाड़ियों की स्पीड बढ़ने लगी लेकिन नक्सलियों ने सामने में ट्रक रख दिया था और उसमे सवार तीन लोगों को भी गोली मार दिया था। तभी काफिले में पहले नंबर पर चल रहे गाड़ी के नीचे सड़क में अचानक एक जोरदार विस्फोट होता है। विस्फोट इतना खतरनाक था की गाड़ी के परखच्चे उड़ जाते हैं, गाड़ी दूर घाटी में जा गिरती है, उसमें बैठे लोगों की लाशें पेड़ों पर लटकने लगती है।

काफिला रुक जाता है लोग गाड़ियों से उतरकर जमीन में लेट जाते है। इसके बाद नेताओं के साथ चल रहे सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच ताबड़तोड़ गोलाबारी शुरु हो जाती है। लगभग एक से डेढ़ घंटे तक गोलीबारी चली उसके बाद सुरक्षा बलों की गोलियां खत्म हो गई।

इस दौरान विद्या चरण शुक्ल जी के सुरक्षाकर्मी की बंदूक में एक अंतिम गोली बची थी उन्होंने विद्याचरण जी से माफी मांगी और कहा की ‘सॉरी सर.. अब मैं आपकी रक्षा नहीं कर सकता’ और उस अंतिम गोली को उन्होंने ने खुद के ऊपर उतार दी।

नक्सली इतने बड़े हमले को अंजाम दे रहे थे लेकिन लगभग डेढ़ घंटे बीत जाने के बाद भी इस काफिले को कोई बैकअप या कोई आर्मी सपोर्ट या पुलिस सपोर्ट नहीं मिल पाया था।

यह नक्सलियों का एक फुल्ली प्लान्ड एंबुश था, धीरे-धीरे बात फैलने लगी कि घाटी में कुछ तो बहुत बड़ा हो रहा है।

अब नक्सली सामने आने लगे, उनके टारगेट नंबर वन महेंद्र कर्मा जी थे। नक्सली पूछने लगी कि महेंद्र कर्मा कौन है? उसे सामने लाओ! और ऐसा करते करते उन्होंने 3 लोगों को गोली मार दिया।

इन सब को देखकर महेंद्र कर्मा जी सामने आते हैं और बोलते हैं कि ‘मैं हूं महेंद्र कर्मा गोलीबारी बंद कर दो’। 

महेंद्र कर्मा जी बस्तर के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक थे उन्हें बस्तर टाइगर के नाम से जाना जाता था इन्होंने सलवा जुडूम अभियान की शुरुआत की थी और नक्सलियों के विरोधी रहे थे जिस कारण से वे नक्सलियों के पहले टारगेट थे।

इधर नंदकुमार पटेल, दिनेश पटेल और कवासी लखमा गाड़ी से उतरकर छिपे हुए थे लेकिन नक्सलियों ने इन्हें पकड़ लिया और कुछ दूर जंगल में ले गए। कुछ देर बाद नक्सलियों ने कवासी लखमा जी और गाड़ी के ड्राइवर को छोड़ दिया। इस पर कवासी लखमा जी से सवाल भी किए जाते हैं, कवासी लखमा जी का कहना है कि ‘मैंने इसका विरोध किया, मैंने कहा कि हम साथ में आए हैं तो साथ में ही जाएंगे लेकिन उन्होंने बंदूक की नोक पर मुझे वापस भेज दिया वह किसी विनोद नाम की नक्सली का नाम ले रहे थे’

नक्सली नंद कुमार पटेल और उनके बेटे को जंगल में अंदर की ओर ले गए। कवासी लखमा जी और ड्राइवर रोड की तरफ आ ही रहे थे तभी अचानक उन्हे गोलियां चलने की आवाज आई, फिर कवासी लखमा जी समझ गए की क्या हुआ होगा। सड़क पर लखमा जी को एक बाइक मिलती है जिससे वे जगदलपुर की ओर निकलते हैं।

इधर महेंद्र कर्मा जी के सामने आने के बाद नक्सलियों ने उनको और उनके साथियों को बंधक बनाकर 100 से 200 मीटर अंदर जंगल की ओर ले गए।

ऐसी स्थिति में नक्सली अक्सर कुछ मांग रखते हैं या नेगोशिएशन करते हैं लेकिन आज ये नेगोशिएशन के मूड में नहीं थे, उन्होंने महेंद्र कर्मा जी के गले के पास किसी धारदार हथियार से हमला किया गोली चलाई महेंद्र कर्मा जी गिर पड़े, उसके बाद उन पर 100 से ज्यादा राउंड गोलियां चलाई। इतने से भी मन नहीं भरा तो वह उनके सीने पर चढ़कर नाचने लगे और महेंद्र कर्मा मुर्दाबाद के नारे लगाने लगाने लगे।

विद्या चरण शुक्ल जी को भी गोलियां लगी और वो दर्द से कराह रहे थे। बाद में इन्हे जगदलपुर के अस्पताल में ले जाया गया जहां से इन्हे दिल्ली के लिए रीफर किया गया, लेकीन इनकी जान नहीं बच सकी।

वह शाम बड़ी भयानक थी कुल 29 लोगों मारे गए और 32 से ज्यादा लोग घायल हो गए और इस तरह से यह देश की सबसे बड़े नक्सली हमलों में से एक बन गया।

घटना की खबर मिलते ही न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरा देश सहम गया, छत्तीसगढ़ में शोक का माहौल छा गया, राज्य में तीन दिन का राजकीय शोक रखा गया। आनन-फानन में 26 मई 2013 को सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी छत्तीसगढ़ आए, 27 मई को एनआईए को जांच के लिए आदेश दिया 28 मई को तत्कालीन छत्तीसगढ़ सरकार ने न्यायिक जांच आयोग गठित किया।

घटना के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यह घटना एक राजनैतिक साजिश है, और इसके पीछे सत्ता पक्ष(बीजेपी) का हाथ है। बीजेपी का कहना है कि इसके पीछे कांग्रेस के अंदर के ही कुछ नेताओं का हाथ है। जबकि कुछ का कहना है कि इसमें बीजेपी, कांग्रेस के कुछ नेता, पुलिस और नक्सली सभी की मिलीभगत है।

इस बीच बहुत से सवाल भी उठे जैसे –

• बीजेपी की रैली में सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था थी फिर कांग्रेस की रैली में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं थी?

• नक्सलियों ने कवासी लखमा को क्यों छोड़ दिया और उनको बाइक कैसे मिल गई?

• नक्सलियों द्वारा नेताओं का नाम पूछ पूछ कर मारा गया क्या यह सुपारी किलिंग है?

• अजीत जोगी हेलीकॉप्टर से आए और हेलीकॉप्टर से ही चले गए क्या उनको इस घटना के बारे में पहले से पता था?

ऐसे ही और भी बहुत से सवाल हैं जो लोगों के मन में उठे थे।

कांग्रेस जब विपक्ष में थी तब उनका कहना था कि यह एक राजनैतिक साजिश है और इसके पीछे बीजेपी का हाथ और हमारे पास इसके पुख्ता सबूत है।

तब बीजेपी का कहना था कि अगर कांग्रेस पास कोई पुख्ता सबूत है तो उसे प्रस्तुत करें बयान बाजी ना करें, कांग्रेस बस अपनी राजनैतिक रोटी सेंक रही हैं।

यह बात भी सोचने वाली है कि नक्सली अक्सर सरकार पर हमला करती है लेकिन कांग्रेस उस समय विपक्ष में थी तो उन पर हमला क्यों? कांग्रेस को एनआईए की जांच पर पूरा कॉन्फिडेंस नहीं है इसलिए वह एसआईटी से जांच करवाना चाहती है। कांग्रेस को न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट पर भी कॉन्फिडेंस नहीं है इसलिए उन्होंने दूसरा जांच आयोग बिठाया है।

कांग्रेस का कहना है कि इस घटना के पॉलीटिकल एंगल की जांच नहीं हुई है अगर जांच हुई तो बहुत से नाम सामने आएंगे और झीरम के शहीदों को सही न्याय मिल पाएगा।

9 साल बीत जाने के बाद भी अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है।


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