राज्य कैसे बनता है? भारत में नए राज्य बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को प्राप्त है और संसद के अंतर्गत लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति आते हैं।
किसी राज्य के अस्तित्व में आने के पीछे वहां के जनता की बरसों पुरानी संघर्ष छिपी होती है, आईए छत्तीसगढ़ के उदाहरण से समझते हैं कि एक राज्य कैसे बनता है?
छत्तीसगढ़ की प्रथम संकल्पना
छत्तीसगढ़ एक पृथक राज्य हो ऐसी संकल्पना करने वाले प्रथम व्यक्ति स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित सुंदरलाल शर्मा जी थे। इन्होंने सन् 1918 में प्रकाशित अपने पांडुलिपि में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की स्पष्ट संकल्पना की थी।
पंडित सुंदरलाल शर्मा के अनुसार – ‘जो भू–भाग उत्तर में विंध्यश्रेणी व नर्मदा से दक्षिण में इंद्रावती व ब्राह्मणी तक है, जिसके पश्चिमी में वेनगंगा बहती है और जहा पर गढ़ नामवाची ग्राम संज्ञा है; जहां पर सिंगबाजा का प्रचार है, जहां स्त्रीयों का पहनावा (वस्त्रप्रणाली) प्राय: एक वस्त्र है तथा जहां धान की खेती होती है, वही भू–क्षेत्र छत्तीसगढ़ है।’
दक्षिण कोसल से छत्तीसगढ़ बनने तक का सफर
रामायण और महाभारत जैसे पौराणिक ग्रंथों में छत्तीसगढ़ का उल्लेख दक्षिण कोसल और महाकोसल के रूप में हुआ है और तब से लेकर 17वीं शताब्दी तक यह क्षेत्र दक्षिण कोसल नाम से जाना जाता रहा है।
इसे अयोध्या के राजा श्रीराम का ननिहाल और उनकी माता कौशिल्या का माइका कहा जाता है। आज जिसे हम बस्तर के नाम से जानते हैं उसे इन ग्रंथों में दंडकारण्य कहा गया है।
• ऐतिहासिक काल
ऐतिहासिक काल में यह क्षेत्र मौर्य, सातवाहन, गुप्त और वाकाटक साम्राज्यों का अंग रहा। बाद में इसके दक्षिणी हिस्से में नलवंश का आधिपत्य रहा और अंततः सोमवंशियो की सत्ता कायम हुई।
• कल्चुरी काल
सोमवंशियो के पतन के पश्चात यह क्षेत्र कलचुरियों के आधिपत्य में रहा। कलचुरियों ने छत्तीसगढ़ में (1000–1741 ई.) तक शासन किया है।
कल्चुरी राजा रत्नदेव ने ही 1050 ई. के आसपास रत्नपुर नामक नगर की स्थापना किया जो वर्तमान में रतनपुर नाम से जाना जाता है और यही इनकी राजधानी बनी।
कल्चुरी शासन के दौरान इस राज्य में 36 किले हुआ करते थे 18 किला रतनपुर शाखा में और 18 किला रायपुर शाखा में। इन्हीं 36 गढ़ों के कारण इस राज्य का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा।
• मराठा काल
16वीं शताब्दी में कलचुरियों के कमज़ोर होते ही इसके उत्तरी हिस्से में मंडला के गोंडवाना राजाओं का राज आ गया। अंततः यह राज्य 1741 ई. में नागपुर के भोंसले शासकों के हाथों में चला गया और यह मराठा राज्य का हिस्सा बन गया।
मराठा शासकों ने ही छत्तीसगढ़ शब्द सबसे ज्यादा को प्रचलित किया, इन्हीं के शासनकाल में छत्तीसगढ़ शब्द के लिखित साक्ष्य मिलते हैं।
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग
आइए जानते हैं ब्रिटिश शासनकाल के दौरान और स्वतंत्र भारत में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के मांगों और संघर्षों के बारे में –
• ब्रिटिश शासनकाल में
मराठों के बाद यह क्षेत्र अंग्रेजों के आधिपत्य में आया और इन्होंने राजधानी के रुप में रतनपुर के स्थान पर रायपुर को महत्त्व दिया। अंग्रेजों के समय यह राज्य मध्य प्रांत (सेन्ट्रल प्रोविंस) के अंतर्गत आता था।
मध्य प्रांत के दौरान उड़ीसा का संबलपुर छत्तीसगढ़ का हिस्सा हुआ करता था और वर्तमान सरगुजा, कोरिया और जशपुर वाला क्षेत्र बंगाल प्रांत का हिस्सा हुआ करता था।
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग 1920 के दशक से ही शुरु हो गई थी। पंडित सुंदरलाल शर्मा जी द्वारा पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की संकल्पना करने के बाद इसकी मांग उठने लगी।
1924 ई. में रायपुर जिला परिषद ने मध्य प्रांत से पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनाने के लिए एक संकल्प पत्र पारित किया था।
1939 ई. में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में भी छत्तीसगढ़ को पृथक राज्य बनाने की मांग रखी गई थी।
• स्वतंत्र भारत में
आज़ादी के बाद जब भाषायी आधार पर राज्यों का पुर्नगठन किया जाना था तब 1953 ई. में राज्य पुर्नगठन आयोग के समक्ष इसकी मांग रखी गई थी लेकीन आयोग द्वारा इस मांग को नजरंदाज कर दिया गया।
1955 ई. में रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने मध्यप्रांत के विधान सभा के समक्ष इसकी मांग रखी।
28 जनवरी 1956 को ‘छत्तीसगढ़ महासभा’ का गठन किया गया, इस मंच के जरिए पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग रखी गई।
1 नवंबर 1956 के दिन मध्यप्रदेश राज्य की स्थापना हुई और छत्तीसगढ़ को इसके हिस्से के रूप में रखा गया।
16 जनवरी 1967 को रायपुर में सम्मेलन किया गया और राष्ट्रपति से पृथक राज्य की मांग की।
1967 में इसके लिए ‘छत्तीसगढ़ भातृसंघ’ की स्थापना की गई।
1976 में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, 1983 में छत्तीसगढ़ संग्राम मंच की स्थापना किया गया।
1983 में राजिम क्षेत्र के संत पवन दीवान के द्वारा पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी की स्थापना की गई।
1992 में सर्वदलीय मंच की स्थापना की गई।
1993 में महाबंद का आयोजन किया गया था।
1994 में मध्यप्रदेश के विधान सभा में छत्तीसगढ़ को राज्य बनाने के लिए अशासकीय संकल्प पत्र लाया गया जो की सर्वसम्मति से पास हुआ।
छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना
छत्तीसगढ़ वासियों के अथक संघर्ष को देखते हुए केंद्र की अटल सरकार ने छत्तीसगढ़ को राज्य का दर्जा देने के लिए 1998 में मध्यप्रदेश पुर्नगठन विधेयक,1998 लाया। लेकीन केन्द्र की अटल सरकार गिर गई और यह विधेयक पास नही हो पाया।
1999 में केंद्र में फिर से अटल जी की सरकार आई और पुनः मध्यप्रदेश पुनर्गठन विधेयक, 2000 लाया गया और इस बार यह विधेयक संसद में सर्वसम्मति से पास हुआ और इस तरह से छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया।
• राज्यों को पुनर्गठित करने की संसद की शक्ति
संसद को हम देश में राज्यों संपादक कह सकते हैं क्योंकि कौनसा राज्य बनाना है, कहा बनाना है, किस राज्य की सीमा को बढ़ाना है किसकी सीमा को घटाना है, किसका नाम बदलना है ये सब करने की शक्तियां सिर्फ संसद को प्राप्त है।
• राज्य को पुनर्गठित करने की प्रक्रिया
सबसे पहले राष्ट्रपति महोदय राज्य को पुनर्गठित करने के लिए केंद्र सरकार से सिफारिश करेंगे।
राष्ट्रपति के सिफारिश के आधार पर केंद्र सरकार संसद के समक्ष विधेयक(बिल) पेश करेंगे।
संसद में विधेयक पेश करने से पहले ऐसा ही विधेयक संबंधित राज्य के विधानसभा में पेश किया जाता है ताकि राज्य इस पर अपना विचार रख सके।
हालाकि, इस संदर्भ में राज्य के विचार को उतना महत्व नहीं दिया जाता राष्ट्रपति चाहे तो राज्य की बात मान सकते हैं या नहीं भी मान सकते हैं (यहां पर राज्य से मतलब राज्य की सरकार से है ना की जनता से)।
संसद में विधेयक को सबसे पहले लोकसभा के समक्ष पेश किया जाता है लोकसभा से पास हो जानें के बाद इसे राज्यसभा के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है राजसभा से भी पास होने जानें पर इसे अंतिम निर्णय और हस्ताक्षर के लिए राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक अधिनियम बन जाता और पुर्नगठन संपन्न हो जाता है और नए राज्य को राज्य का संवैधानिक दर्जा मिल जाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य के स्थापना की प्रक्रिया
छत्तीसगढ़ राज्य मध्यप्रदेश का हिस्सा था इसलिए इसे अलग करने के लिए मध्यप्रदेश पुर्नगठन विधेयक, 2000 लाया गया।
25 जुलाई 2000 के दिन लालकृष्ण आडवाणी जी के द्वारा इस विधेयक को लोकसभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया जो की 31 जुलाई 2000 को लोकसभा से पारित हो गया। इसके बाद इस विधेयक को 3 अगस्त 2000 के दिन राज्यसभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया और राज्यसभा में यह विधेयक कुछ संशोधनों के साथ 9 अगस्त 2000 के दिन पारित हो गया और लोकसभा ने राज्यसभा के संशोधनों को स्वीकार कर लिया।
लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद यह विधेयक राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए पहुंचा और 28 अगस्त को महामहिम राष्ट्रपति ने इस पर हस्ताक्षर कर दिया। इस तरह यह मध्यप्रदेश पुर्नगठन विधेयक, 2000 से मध्यप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 बन गया।
और इस प्रकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप निर्धारित तिथि 1 नवंबर, 2000 को मध्यप्रदेश से पृथक होकर छत्तीसगढ़ भारत संघ का 26वां राज्य बना।