कमार कौन है?
कमार भारत की एक विशेष पिछड़ी जनजाति है जो छत्तीसगढ़ के रायपुर संभाग में पाई जाती है और इनका मुख्य निवास स्थान गरियाबंद जिला है। इसके अलावा ये धमतरी, महासमुंद और उड़ीसा के सीमावर्ती इलाकों में निवास करते हैं।
गरियाबंद जिले के गरियाबंद विकासखंड, मैनपुर विकासखंड और छुरा विकासखंड में इनकी जनसंख्या ज्यादा है।
ये अपनी उत्पत्ति मैनपुर विकासखंड के देव डोंगर गांव को मानते हैं और इनके देवता वामन देव यहीं निवास करते हैं।
ये अपने तीर–कमान और आदिम जीवनशैली के लिए जानें जाते हैं, महुआ का शराब इनका प्रिय पेय है।
कमार लोगों की भाषा एवं जाति समूह
यह एक द्रविड़ मूल की जनजाति है और इनकी भाषा कमारी है।
कमार लोगों का पहनावा
कमार पुरुषों के सिर पर लंबे बाल, हाथों में धनुष–बाण और कंधे पर कुल्हाड़ी होता है। ये अपने बालों को नाई से नही कटवाते हैं। ये प्रायः कम वस्त्र धारण करते हैं धोती और लंगोटी पहनते हैं।
महिलाएं साड़ी पहनती हैं और गिलेट (नकली चांदी के आभूषण) धारण करती हैं इन्हे गोदना गुदवाना बहुत पसंद होता हैं।
आभूषणों के प्रति इनका लगाव कम है और ये प्रायः नंगे पांव ही रहते हैं।
कमार लोगों का रहन–सहन
कमार जंगलों में रहना पसंद करते हैं और इनके गांवों में दस से पंद्रह घर होते हैं इन्हे ज्यादा आबादी वाले गांव पसंद नही होते। अपने गांव में ये बिखरे–बिखरे बसे होते हैं।
अगर गांव की आबादी ज्यादा है और वहां अलग–अलग जाति के लोग रहते हैं तो इनका निवास स्थान गांव के किसी कोने में कमारपारा के रूप होता है।
इनके घर कच्ची मिट्टी और लकड़ियों के बने होते हैं और घर के सामने में लकड़ी का माचा या मड़वा बना होता है। घर से ही छोटी सी बाड़ी लगी होती है।
घर में एक कमरा होता है जिसमें दीवाल खड़ा करके रसोई या देवी देवताओं का निवास स्थान बनाया जाता है।
पहले के समय में यदि घर में किसी की मृत्यु हो जाती थी तो ये उस घर को छोड़कर दूसरा घर बना लेते थे।
इनके यहां बुजुर्ग लोग बहुत कम ही दिखाई देते हैं, इनकी औसत आयु सामान्य से कम है।
कमार जनजाति की सामाजिक व्यवस्था
इनके घर परिवार के सभी निर्णय पुरूष लेते हैं।
इनकी दो उपजातियां है –
1. पहाड़पत्तिया/माकड़िया – पहाड़ों में रहते हैं।
2. बुंदरजीवा/बुधरजीवा – मैदानी इलाके में रहते हैं।
ये पंचायत को कुरहा और प्रमुख को मुखिया कहते हैं। इनमें नाई से बाल कटवाने का प्रावधान नहीं है और घोड़े को छूना भी निषेध है।
विवादों का निपटारा इनके पंचायत द्वारा ही होता है जुर्म संगीन होने पर उस व्यक्ती या उसके परिवार को समाज से निकाल दिया जाता है।
कमार लोगों का आर्थिक जीवन
कमार लोग आज भी आदिम तरीके से जीना पसंद करते हैं और काफ़ी हद तक आज भी जंगलों पर निर्भर हैं। चावल और कंदमूल इनका प्रमुख भोजन है, ये शिकार करने के लिए जानें जाते हैं और जीवन यापन के लिए डहिया खेती करते हैं तथा बांस के बर्तन बनाते हैं।
इसके अलावा ये जीवन यापन के लिए शहद, तेंदू पत्ता, तेंदू, साल बीज, चिरौंजी, महुआ, लाख, हर्रा, बेहड़ा, कुसुम, टोरी ईत्यादि इकट्ठा करते हैं।
इनमें शिक्षा का अभाव है, ये वर्तमान में जीते हैं और भविष्य के लिए ज्यादा कुछ बचाकर नही रखते जिस कारण से ये मुख्यधारा से नही जुड़ पा रहे हैं।
कमार लोगों के देवी–देवता
इनके प्रमुख देवी देवताओं में गाता डूमा, वामन देव, शीतला माता है।
इनके अलावा इनके पोगरी देव (कुलदेवता), मांगरमाटी (पूर्वजों के गांव का या घर की मिट्टी), गाता डूमर (पूर्वज), बड़ी माता, छोटी माता, मंझली माता प्रमुख हैं।
ये नवाखाई का त्यौहार मनाते हैं।
कमार जनजाति में अंधविश्वास
ये लोग झाड़फूंक में विश्वास रखते हैं और बइगा या पुजारी से झाड़फूंक करवाते हैं। पूजा पाठ के दौरान बलि भी देते हैं। यह एक अंधविश्वास में जकड़ा हुआ समाज है।
प्राथमिक उपचार के लिए झाड़फूंक और जड़ी–बूटियों को प्राथमिकता देते हैं।
कमार जनजाति में जन्म–संस्कार
कमार जनजाति में पुत्र के जन्म पर नाल (नेरवा) को तीर से काटते हैं और पुत्री के जन्म पर ‘कहरा’ (बांस की पंछी) से काटते हैं।
अगर महिला लड़के को जन्म देती है तो उसे डेढ़ महीना घर के बाहर मड़वा के नीचे बिताना होता है और लड़की को जन्म देती है तो एक महीना घर के बाहर मड़वा के नीचे बिताना होता है।
कमार जनजाति में विवाह संस्कार
समगोत्रिय विवाह वर्जित है।
विवाह में – सेवा विवाह, गुरांवट विवाह, पैठू (घुसपैठ) विवाह, उड़रिया(सहपालयन) विवाह, घरजमाई विवाह, चूड़ी पहनावा विवाह प्रमुख है।
मामा और बुआ के लड़की–लड़के से विवाह हो सकता है, ये 12–13 वर्ष की लड़की और 14–15 वर्ष के लड़के की शादी कर देते हैं।
मंगनी हो जानें के बाद लड़की दो–तीन महीने के लिए लड़के के घर आकर रह सकती है।
इनके यहां बहुपत्नी प्रथा भी है।
विधवा का दोबारा विवाह नहीं होता लेकिन उसे चूड़ी पहनाकर पत्नी के रुप में रख सकते हैं।
कमारों में वधु मूल्य समेत शादी का सारा खर्चा वर पक्ष को ही उठाना पड़ता है।
कमार जनजाति में मृत्यु–संस्कार
ये लोग शवों को दफनाते हैं और सिर को उत्तर दिशा की ओर रखते हैं।
कमार जनजाति में स्त्रीयों की स्थिती
घर का सारा काम औरतें करती हैं
कमार जनजाति और महुआ शराब
महूए का शराब इनका प्रिय पेय है इसके बिना इनकी कोई भी रस्म पूरी नही होती। ये बचपन से बच्चों को शराब चटाना शुरु कर देते हैं। शाम होते ही ये आग जलाकर मड़वा के नीचे बैठ जाते हैं और शराब का लुफ़्त लेते हैं।
कमार जनजाति में नृत्य–संगीत
ये सुवा और करमा नृत्य करते हैं और मांदर वाद्ययंत्र का उपयोग करते हैं।
S.C. Dubey the kamaar book