पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में कैसे आई?


पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में कैसे आई?



पंचायती राज क्या है?

‘पंचायती राज’ वह व्यवस्था है जिसके ज़रिए देश के गांवों को अपने हिसाब से शासन करने की शक्तियां मिली हुई है।


पंचायती राज अस्तित्व में कैसे आई?


1. बलवंत राय मेहता कमेटी 

जनवरी 1957 को भारत सरकार ने Community Development Program (1952) और National Extension Service (1953) को अध्ययन करने के लिए एक कमिटी बनाई जिसके चेयरमैन बलवंत राय मेहता थे।

इन्होंने अपनी रिपोर्ट नवंबर 1957 को सौंपी इसमें इन्होंने देश में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (Democratic Decentralisation) करने का सुझाव दिया और यही आगे चलकर पंचायती राज व्यवस्था के रूप में सामने आया।


• पंचायती राज स्थापित करने वाला पहला राज्य 

राजस्थान देश का पहला राज्य बना जहा पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई।

राजस्थान के नागौर जिले में 2 अक्टूबर 1959 के दिन प्रधान मंत्री जी के द्वारा इसकी  शुरुआत की गई।

इसके बाद से ही इस व्यवस्था को 1959 में ही आंध्र प्रदेश के द्वारा अपना लिया गया।


1960 के बाद से बहुत से राज्य अपने यहां पंचायती राज व्यवस्था लागू करने लगे, लेकिन अलग–अलग राज्यों के हिसाब से कार्यप्रणाली अलग–अलग थी।
पंचायतों के कार्यकाल में अंतर था, राजस्थान में त्रि स्तरीय व्यवस्था थी तो तमिलनाडु में दो स्तरीय वही पश्चिम बंगाल में चार स्तरीय व्यवस्था को अपनाया गया था
पावर डिस्ट्रीब्यूशन भी अलग अलग राज्यों के हिसाब से अलग अलग था।


1960 के बाद से पंचायती राज व्यवस्था के विभिन्न पुहलुओ को जांचने और परखने के लिए बहुत से study team बनाई गई जो की निम्न है 

2. अशोक मेहता कमिटी 

दिसंबर 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं के ऊपर अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई जिसे अशोक मेहता कमिटी के नाम से जाना गया।

इस कमिटी अगस्त 1978 में अपना रिपोर्ट सौंपा और कमजोर होते पंचायती राज व्यवस्था में फिर से जान फूंकने के लिए सरकार के पास कुल 132 सिफारिशे रखी।

लेकिन कार्यकाल पूरा होने से पहले ही जनता पार्टी की सरकार गिर जाने के कारण इस कमिटी के सुझाओ पर सेंट्रल लेवल पर कोई ऐक्शन नही लिया गया।
हालाकि तीन राज्य कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश ने अपने संस्थाओं को मजबूत बनाने के लिए इसके सुझाओं को ध्यान में रखा।

3. G.V.K Rao कमिटी 

प्रशासनिक व्यवस्था और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की समीक्षा करने के लिए भूतपूर्व योजना आयोग के द्वारा सन् 1985 में G.V.K. Rao की अध्यक्षता में कमिटी बनाई गई।

यह कमिटी इस निष्कर्ष पर पहुंची की विकास की जो प्रक्रिया है वह धीरे–धीरे नौकरशाही हो गया है पंचायती राज तो महज़ नाममात्र का रह गया है।

फिर इस कमिटी ने अपने सुझाव रखे पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने के लिए।

4. L M सिंघवी कमिटी 

सन् 1986 में राजीव गांधी सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं के पुनरोद्धार के लिए एक अवधारणा पत्र तैयार करने के लिए एक कमिटी गठित करी जिसकी अध्यक्षता LM सिंघवी कर रहे थे।

5. थुंगन कमिटी 

सन् 1988 में P. K. थुंगन की अध्यक्षता में संसद के परामर्श समिति की एक उप–समिति बनी, जिसका उद्देश्य जिला कार्ययोजना के लिए राजनैतिक और प्रशासनिक संरचनाओं की समीक्षा करना था।

इस समिति ने भी पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने के लिए अपने सुझाव दिए।


6. गडगिल कमिटी 

कांग्रेस पार्टी द्वारा 1988 में V.N. गडगिल की अध्यक्षता में पॉलिसी एंड प्रोग्राम्स कमिटी गठित कि गई।
इस कमिटी से सवाल किया गया की ‘किस तरह से पंचायती राज संस्थाओं को और सुदृढ़ और प्रभावशाली बनाया जा सकता है’
जिसके जवाब में समिति ने अपने सुझाव सामने रखे।

और इसी कमिटी के सुझाव आगे चलकर संविधान संशोधन बिल को ड्राफ्ट करने का आधार बना जिसके ज़रिए पंचायती राज संस्थाओं को संविधानिक दर्जा मिला।

पंचायतों को संवैधानिक मान्यता

पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता दिलाने हेतु विभिन्न सरकारों द्वारा किए गए प्रयास –

• राजीव गांधी सरकार

पंचायतों को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए राजीव गांधी सरकार द्वारा जुलाई 1989 में 64वा संविधान संशोधन बिल पेश किया गया।

यह बिल अगस्त 1989 में लोकसभा से तो पास हो गया, लेकीन राज्य सभा में नहीं हो पाया।

इस बिल को विपक्ष के द्वारा ‘संघीय व्यवस्था में केंद्र को मजबूत करने की साजिश’ बताकर विरोध किया गया।


• V. P. सिंह सरकार 

नवंबर 1989 में नेशनल फ्रंट की सरकार बनी और प्रधान मंत्री बने वी. पी. सिंह।

नेशनल फ्रंट की सरकार ने घोषणा करी की वह पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने के लिए कदम उठाएंगे और पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिलाएंगे।

इसी विषय को लेकर जून 1990 में वी पी सिंह की अध्यक्षता में राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ दो दिनों का कांफ्रेंस रखा गया, जिसमें पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने के लिए विभिन्न मुद्दों पर चर्चा किया गया।

इस कांफ्रेंस में संसद के समक्ष एक नए संविधान संशोधन बिल लाने के प्रस्ताव को  मुख्यमंत्रियों द्वारा स्वीकृत किया गया। जिसके बाद सितंबर 1990 में लोक सभा में इस बिल को पेश किया गया।
लेकिन नेशनल फ्रंट की वी. पी. सिंह सरकार गिर जाने के कारण यह बिल फिर से पास नही हो पाया।


• नरसिम्हा राव सरकार 

1991 में कांग्रेस की सरकार आई और प्रधानमंत्री P. V. नरसिम्हा राव जी बने।

सत्ता में आने के बाद कांग्रेस पार्टी की सरकार एक बार फिर से पंचायती राज संस्थाओं सवैधानिक दर्जा दिलाने के विषय में कार्य करने लगी। 

इस बार उन्होने इस प्रस्ताव में से विवादित पहलुओं को हटा दिया और संसद के समक्ष संविधान संशोधन बिल पेश किया।

सितंबर 1991 इस बिल को लोक सभा में पेश किया गया। इस बार यह बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो गया। और राष्ट्रपती के हस्ताक्षर के बाद अंततः यह बिल 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 बन गया। 

यह अधिनियम 24 अप्रैल 1993 से प्रभाव में आया और इसके बाद पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो गया। 



73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992


Please do not enter any spam link in the comment box.

एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने