पंडित सुंदरलाल शर्मा–छत्तीसगढ़ के गांधी

पंडित सुंदरलाल शर्मा एक महान समाज सेवी, साहित्यकार और स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भूमिका निभाई है। 

पंडित सुंदरलाल शर्मा–छत्तीसगढ़ के गांधी

समाज कल्याण की भावना, जातिप्रथा का विरोध, हरिजनों के उत्थान और देश के प्रति इनके समर्पण के कारण ही इन्हें छत्तीसगढ़ का गांधी भी कहा जाता है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इन्हे अपना गुरु मानते हैं।


पंडित सुंदरलाल शर्मा का प्रारंभिक जीवन

पंडित सुंदरलाल शर्मा जी का जन्म 21 दिसंबर 1981 को राजिम के निकट महानदी के तट में बसे ग्राम चद्रसुर में हुआ है। इनके पिता पंडित जयलाल तिवारी कांकेर रियासत में सलाहकार और 18 गांवों के मालगुजार थे, इनकी माताजी का नाम देवमती है।

इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही पूर्ण हुई, इसके पश्चात उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए कांकेर रियासत के जाने माने शिक्षक इनके घर आते थे।

इन्होंने संस्कृत, अंग्रेज़ी, बांग्ला, मराठी, उड़िया भाषा तथा संगीत, ज्योतिष, धर्म–दर्शन, और इतिहास का गहन अध्ययन किया है।

ये एक उत्कृष्ट साहित्यकार, चित्रकार, मूर्तिकार और रंगमंच के कलाकार थे।

सन् 1914 में इन्होंने राजिम में एक पुस्तकालय की स्थापना करवाई

 

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ लड़ाई 

इन्होंने घर–घर जाकर लोगों को देश के प्रति जागरूक किया, इनकी कविताओं ने लोगों को नई दिशा और प्रेरणा दिया।

इन्होंने सन् 1906 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में भाग लिया और लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जी के गरम दल को समर्थन दिया।

इन्होंने स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया और इसके लिए राजिम, रायपुर और धमतरी में स्वदेशी वस्त्रों के दुकानें खोली। हालांकि आर्थिक नुकसान के कारण इन दुकानों को सन् 1911 में बंद करना पड़ा।

निरंतर आंदोलनों में भाग लेने के कारण इनकी और इनके दोस्तों की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी थी लेकिन फिर भी ये पिछे नही हटे।


स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी

1920 के गांधी जी के असहयोग आंदोलन में इन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया जिसके कारण इन्हें जेल भी जाना पड़ा। लेकीन ये अपने कर्तव्य से पिछे नहीं हटे। 

सन 1930 में नागपुर सत्याग्रह के दौरान भी इन्हें जेल हुई और 1932 में ये फिर से जेल गए।

ये एक महान समाजसेवी थे जिन्होंने आम लोगों की भलाई के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया जिस कारण इन्हें छत्तीसगढ़ का गांधी भी कहा जाता है। इन्होंने अपने लेखों से लोगों को जागरुक किया है।


कंडेल नहर सत्याग्रह और गांधी जी का छत्तीसगढ़ आगमन 

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में माडमसिल्ली जलाशय है जिसकी नहर कंडेल गांव से होकर गुजरती है, इस नहर के पानी का उपयोग सिंचाई के लिए होता है। 

लेकिन ब्रिटिश राज के समय में जल संसाधन विभाग ने जनता के समक्ष कर के पैसे के लिए दस सालों का अनुबंध करने का प्रस्ताव रखा, जिसकी राशि इतनी जादा था की इससे एक और सिंचाई तालाब बनाया जा सकता था। 

इसी कारण से बाबू छोटेलाल के नेतृत्व में गांव वालों के साथ सभा रखकर इस प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला लिया गया। और इस तरह से कंडेल नहर सत्याग्रह 1920 की शुरुआत हुई।

इस समय कंडेल गांव बाबू छोटेलाल जी की पैतृक सम्पत्ति हुआ करती थी।

इस सत्याग्रह को आम लोगों और समाज सेवियों द्वारा बहुत ही अच्छी प्रतिक्रिया मिलने लगी, और गांव–गांव में जनसभाओं के द्वारा लोगों को जागरुक किया जानें लगा, अंग्रेज़ी शासन के फैसले का विरोध किया जाने लगा।

विरोध को कुचलने के लिए अंग्रेजो द्वारा जनता को भारी जुर्माने से डराया गया, उनके मवेशियों को जब्त कर लिया गया और उन्हें नीलामी के लिए धमतरी के इतवारी बाजार ले जाया गया, लेकीन कोई खरीददार सामने नहीं आया।

सितंबर 1920 में बाबू छोटेलाल, पंडित सुंदरलाल शर्मा और नारायण राव मेघावले की उपस्थिति में कंडेल में सभा हुई और सत्याग्रह के आकार को बड़ा करने का फैसला लिया गया।

इसके लिए इस आंदोलन में मार्गदर्शन के लिए इन्होंने महात्मा गांधी जी को आमंत्रित किया। महात्मा गांधी इस सत्याग्रह से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने छत्तीसगढ़ आने के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। 

और इस प्रकार दिसंबर 1920 में गांधी जी का प्रथम बार छत्तीसगढ़ आगमन हुआ, 21 दिसंबर 1920 को वे इस आंदोलन में शामिल हुए। महात्मा गांधी के इस आंदोलन में शामिल होने की बात से अंग्रेज डर गए, उन्हें इस बात का डर था की कहीं ये राष्ट्रव्यापी मुद्दा न बन जाए।

इसके बाद अंग्रेजी शासन पीछे हटी, जुर्माने वापस लिए गए और मवेशियों को वापस लौटाए गए। इस तरह से इस अंदोलन में आम जनता की जीत हुई और अंग्रेजो की हार हुई। 

इस आंदोलन को सफल बनाने का श्रेय बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव, पंडित सुंदरलाल शर्मा और नारायण राव मेघावले जैसे बहुत से लोगों को जाता है जिन्होंने जनता को जागरुक किया, सत्यागृह की रूपरेखा तैयार करी और गांधी जी को छत्तीसगढ़ आमंत्रित किया।


समाज सेवी के तौर पर 

समाज सेवा के लिए इन्होंने अपनी संपत्तियों तक को दान कर दिया। इन्होंने दलितों के उद्धार के लिए बहुत से प्रयास किए हैं। सन 1935 में अपने सहयोगियों के सहयोग से धमतरी में एक अनाथालय, रायपुर में एक सतनामी आश्रम और राजिम में पुस्तकालय की स्थापना करवाई। राजिम में ही ब्रह्मचर्य आश्रम की स्थापना करवाई और इसी तरह से समाज के उद्धार के लिए इन्होंने बहुत से काम किए हैं। 

गांधी जी ने पंडित सुंदरलाल शर्मा को अपना गुरु माना 

वैसे तो सुंदरलाल शर्मा जी गांधी जी को अपना आदर्श मानते थे और उनके आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल होते थे।

1933 में गांधी जी हरिजन उद्धार के लिए भारत यात्रा पर निकले, लेकिन इनके इस यात्रा मे निकलने के बहुत पहले से ही पंडित सुंदरलाल शर्मा दलितों के उद्धार के लिए काम कर रहे थे। वे जातिप्रथा के विरोधी थे और आजीवन जातिप्रथा के खिलाफ संघर्षरत रहे हैं, जिस कारण इन्हें छत्तीसगढ़ का गांधी कहा जाता है।

भारत में दलितों के उद्धार के लिए महात्मा गांधी को याद किया जाता है, लेकीन स्वयं गांधीजी ने इस क्षेत्र में पंडित सुंदरलाल शर्मा को अपना गुरु माना है और सार्वजनिक मंचों पर इस बात को स्वीकारा है।


साहित्य के क्षेत्र में पंडित सुंदरलाल शर्मा 

लेखन के क्षेत्र में इनकी विशेष रुचि रही है, इनकी पहली कविता सन 1898 में रसिक मित्र में प्रकाशित हुई है। इन्होंने छत्तीसगढ़ी जैसी ग्रामीण बोली में साहित्यिक रचना करी है।

इनकी छत्तीसगढ़ी में लिखी गई रचना दान–लीला पर राष्ट्रव्यापी साहित्यिक विमर्श हुई है। 

इन्होंने लगभग 22 साहित्यिक ग्रंथ लिखें हैं जिनमें 4 नाटक 2 उपन्यास और काव्य रचनाएं हैं।

इनकी कृतियों में –

काव्य रचनाएं 

• श्री राजीव क्षेत्र महात्म्य

• करुणा पचीसी 

• प्रलाप पदावली

• स्फूट पद्य संग्रह

• ध्रुव चरित्र आख्यान

• स्वीकृति भजन संग्रह 

• ब्रह्मण गीतावली 

• सतनामी भजन माला 

• काव्य दिवाकर 

• सदगुरु वाणी 

• दान–लीला (दान–लीला छत्तीसगढ़ी का प्रथम प्रबंध काव्य है।)

नाटक 

• प्रहलाद 

• पार्वती परिणय 

• सीता परिणय 

• विक्रम शशिकला 

जीवनी 

• विश्वनाथ पाठक की काव्यमय जीवनी 

• रघुराज सिंह गुण कीर्तन 

• विक्टोरिया वियोग 

• दुलरुवा

• श्री राजिम प्रेम पीयुष 

उपन्यास 

• उल्लू उदार

• सच्चा सरदार 

प्रमुख हैं।

दान लीला में ये अपने बारे में इस प्रकार से लिखते हैं :–


"छत्तिसगढ़ के मंझोत एक राजिम सहर, जहां जतरा महिना माघ भरते। 

देश देश गांव गांव के जो रोजगार भारी, माल असबाब बेंचे खातिर उतरथे। 

राजा अऊ जमींदार मंडल किसान धनवान जहां जुरके जमात ले निकरथे। 

सुंदरलाल द्विजराज नाम हवै एक, भाई! सुनौ तहां कविताई बैठी करथे।"


• इन्होंने दुलरवा नामक एक छत्तीसगढ़ी पत्रिका का संपादन किया है, इनकी छत्तीसगढ़ी रामायण अप्रकाशित रही है।

• जेल में रहते हुए इन्होंने श्री कृष्ण जन्म स्थल समाचार पत्र नामक हस्तलिखित पत्रिका निकाली।


पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वप्नदृष्टा 

इन्हें छत्तीसगढ़ राज्य का प्रथम स्वप्नदृष्टा माना जाता है, 1918 में प्रकाशित अपने पांडुलिपि में इन्होंने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की स्पष्ट संकल्पना की है जो की इस प्रकार से है :–

‘जो भू–भाग उत्तर में विंध्यश्रेणी व नर्मदा से दक्षिण में इंद्रावती व ब्राह्मणी तक है, जिसके पश्चिमी में वेनगंगा बहती है और जहा पर गढ़ नामवाची ग्राम संज्ञा है; जहां पर सिंगबाजा का प्रचार है, जहां स्त्रीयों का पहनावा (वस्त्रप्रणाली) प्राय: एक वस्त्र है तथा जहां धान की खेती होती है, वही भू–क्षेत्र छत्तीसगढ़ है।’


पंडित सुंदरलाल शर्मा जी का निधन 

पंडित सुंदरलाल शर्मा अपने अंतिम दिनों में राजिम मे महानदी के निकट पर्ण कुटीर मे निवास करते थे। यहीं पर 28 दिसंबर 1940 को इनका निधन हो गया।

इनकी मृत्यु के पश्चात स्वतंत्र भारत में भारत सरकार ने इनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया, इनके नाम पर बहुत से चाैक–चौराहे और संस्थाए है। बहुत से विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को इनके नाम पर रखा गया है।

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