बस्तर का नलवंश–छत्तीसगढ़ का क्षेत्रीय राजवंश

नलवंश छत्तीसगढ़ का एक क्षेत्रिय राजवंश है जिन्होंने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में राज किया है। इन्होंने चौथी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक शासन किया है जिस कारण से इसे हम छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास के अंतर्गत पढ़ते हैं।

बस्तर का नलवंश–छत्तीसगढ़ का क्षेत्रीय राजवंश


नलवंश की स्थापना और राजधानी

राजा शिशुक नल वंश के संस्थापक के तौर पर जानें जाते हैं लेकिन इस वंश का वास्तविक संस्थापक वराहराज को कहा जाता है।

शुरुआत में इनकी राजधानी ओडिशा का कोरापुट था, लेकिन बाद में इसे बदलके पुष्करी कर दिया गया। पुष्करी को आज के समय में भोपालपट्टनम के नाम से जाना जाता है और यह छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में स्थित है।

नलवंश के लोग अपना संबंध प्राचीन नल से स्थापित करते हैं लेकिन इसके साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। यह वाकाटक वंश और गुप्त वंश के समकालिक वंश है।


नलवंश के शासकों की सूची 

नलवंश के शासकों की क्रमानुसार सूची संस्थापक से लेकर अंतिम शासक तक –

1. शिशुक (संस्थापक)
2. व्याघ्रराज 
3. वृषराज
4. वराहराज (वास्तविक संस्थापक)
5. भवदत्तवर्मन
6. अर्थपति
7. स्कंदवर्मन
8. स्तंभवर्मन
9. नंदराज
10. पृथ्वीराज 
11. विरुपाक्ष
12. विलासतुंग
13. पृथ्वीव्याघ्र 
14. भीमसेन
15. नरेंद्रधवल (अंतिम शासक)


नलवंश के अभिलेख 

इस वंश के अबतक कुल पांच अभिलेख ज्ञात हुए हैं 
जो कि इस प्रकार हैं – 

1. भवदत्तवर्मन का रिद्धीपुर ताम्रपत्र – अमरावती (महाराष्ट्र)
2. अर्थपति का केसरीबेड़ा ताम्रपत्र – ओडिशा 
3. भीमसेन का पंडियापाथर ताम्रपत्र – गंजाम–कोरापुट (ओडिशा)
4. स्कंदवर्मण का पोडागढ़ शिलालेख – ओडिशा
5. विलासतुंग का राजिम शिलालेख – राजिम (गरियाबंद)


नलवंश के महत्त्वपूर्ण शासक

शिशुक – इन्हे नलवंश का संस्थापक माना जाता है।

व्याघ्रराज – गुप्त वंश के शासक समुद्रगुप्त ने दक्षिण विजय अभियान के दौरान नलवंश पर हमला किया। इस समय नलवंश के शासक व्याघ्रराज थे, इस युद्ध में व्याघ्रराज की हार हुई। लेकिन व्याघ्रराज को हराना आसान नहीं था, जिसके कारण इन्हें हराने के बाद समुद्रगुप्त ने व्याघ्रहंता की उपाधि धारण करी। और इसका वर्णन हरिषेण द्वारा लिखित प्रयाग प्रशस्ति में हुआ है।

वराहराज – इन्हे नलवंश का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है, इन्होंने अपने शासनकाल में सोने के सिक्के जारी किए थे जिनमे से 29 सोने के सिक्के कोंडागांव के अड़ेंगा (एडेंगा) से प्राप्त हुए हैं।

भवदत्तवर्मन – इन्होंने वाकाटक नरेश नरेंद्रसेन को परास्त किया था और उसके बाद उनकी राजधानी नंदीवर्धन को तहस–नहस कर दिया था। इस घटना की जानकारी रिद्धीपुर ताम्रपत्र से प्राप्त होती है। इन्होंने अपने शासनकाल में सोने के सिक्के चलाए हैं।

अर्थपति भट्टारक – इनके शासनकाल मे वाकाटक नरेश नरेंद्र सेन के पुत्र पृथ्वी सेन ने पिछली हार का बदला लेने के लिए इनके राज्य पर हमला किया। इस युद्ध में अर्थपति की हार हुई, नरेंद्र सेन ने पुष्करी को तहस–नहस कर दिया। इस घटना की जानकारी केसरीबेड़ा ताम्रपत्र से मिलती है। इन्होंने भी अपने शासनकाल में सोने के सिक्के चलाए हैं।

स्कंदवर्मन – इन्होंने तहस–नहस हो चुके पुष्करी को पुनः बसाया, वाकाटक में इनके समकालिक देवसेन थे। इन्होंने पोडागढ़ में विष्णु मंदिर की स्थापना करवाई।

स्तंभवर्मन और नंदराज – इनके बारे में कुलिया लेख बालोद से जानकारी मिलती है।

पृथ्वीराज – ये भगवान शिव के विरुपाक्ष रूप के अनुयायी थे। इसी समय में चालुक्य शासक कीर्तिवर्मन प्रथम ने नलों पर आक्रमण किया।

विलासतुंग – इन्होंने राजिम में राजीव लोचन मंदिर (विष्णु मंदिर) का निर्माण करवाया जो की पंचायतन शैली में निर्मित है। यहां पर इनका शिलालेख भी है जिसमें पृथ्वीराज, विरुपाक्ष और विलासतुंग का नाम उल्लेखित है।

पृथ्वीव्याघ्र – इनकी जानकारी पल्लव वंश के शासक नंदीवर्मन के उदयेंदीरम ताम्रपत्र से मिलती है।

भीमसेन – ये शैव धर्म के उपासक थे।

नरेंद्र धवल – ये नलवंश के अंतिम शासक हुए।


नलवंश का प्रशासन

• मंडल में प्रशासन सम्हालने के लिए एक प्रमुख व्यक्ती को नियुक्त किया जाता था जिसे मांडलिक कहते थे। 

• एक लाख गांवों का (एक लाख कृषि योग्य भूमि का) प्रशासन सम्हालने वाले व्यक्ति को महामंडलेश्वर कहते थे।

• राज्य में प्रशासन के संचालन में मदद हेतु प्रशासनिक सलाहकार समिति गठित होती थी जिसे महागोष्ठ कहते थे।

• ये लोग मंत्री को प्रेगदा कहते थे।


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