बस्तर का छिंदक नागवंश–छत्तीसगढ़ का क्षेत्रिय राजवंश

छिंदक नागवंश छत्तीसगढ़ का एक क्षेत्रिय राजवंश है जिसने 1023ई. से 1324ई. तक बस्तर क्षेत्र में शासन किया। छिंदक कुल के होने के कारण और राष्ट्र ध्वज में सर्प चिन्ह के होने के कारण इस कुल को छिंदक नागवंश कहा गया।

बस्तर का छिंदक नागवंश–छत्तीसगढ़ का क्षेत्रिय राजवंश

इन्हे कश्यप गोत्र का माना जाता है और इनके शासनकाल में बस्तर को चक्रकोट कहा जाता था। इस वंश को हम छत्तीसगढ़ के मध्यकालीन इतिहास के अंतर्गत पढ़ते हैं और तब "बस्तर" छत्तीसगढ़ का हिस्सा न होकर एक "पृथक राज्य" हुआ करता था। इस कालखंड में छत्तीसगढ़ पर रतनपुर के कलचुरियों का शासन था।    


छिंदक नागवंश का संस्थापक तथा राजधानी 

भोगवतीपुरेश्वर नृपती भूषण छिंदक नागवंश के प्रथम शासक थे और इन्हे ही इस वंश का संस्थापक माना जाता है। इस वंश के शासकों के द्वारा भोगवतीपुरेश्वर की विशेष उपाधि धारण की जाती थी।

राजधानी की बात करें तो इनकी स्थायी राजधानी चक्रकोट (बारसूर, दंतेवाड़ा) रही है, इसके अलावा समय–समय पर इनकी राजधानी बदलती रही है, जैसे की सोमेश्वर देव के समय में इनकी राजधानी भोगवती थी।                         

                                    

छिंदक नागवंशी शासकों की सूची 

1. नृपति भूषण (संस्थापक)

2. धारावर्ष 

3. मधुरांतक देव 

4. सोमेश्वर देव (I)

5. कन्हरदेव (I)

6. राजभूषण सोमेश्वर देव (II)

7. जगदेव भूषण नरसिंह देव (माणिक्य देवी का उपासक)

8. कन्हरदेव (II)

9. जयसिंह देव (I)

10. हरीशचंद्र (अंतिम शासक)।                     


छिंदक नागवंश के प्रमुख शासक 

इस वंश में लगभग 10 शासक हुए हैं जिनमे से प्रमुख शासक जिनके बारे में लिखित जानकारी मिलती है, निम्न है –

• नृपति भूषण 

ये इस वंश के प्रथम शासक और इस वंश के संस्थापक हैं। इनके बारे में एर्राकोट अभिलेख से जानकारी प्राप्त होती है।                           

• धारावर्ष 

धारावर्ष के दरबारी चन्द्रादित्य थे, कहीं–कहीं पर इन्हे धारावर्ष का सेनापति भी कहा गया है। धारावर्ष के शासनकाल के दौरान चंद्रादित्य ने बारसूर में चद्रादितेश्वर(चन्द्रादित्य) मंदिर और चन्द्रादित्य सरोवर का निर्माण करवाया हैं 

• मधुरांतक देव 

ऐसा माना जाता है कि मधुरांतक देव छिंदक नागवंशी नही थे, अपितु छिंदक नागवंशियो के रिश्तेदार थे। धारावर्ष के मृत्यु के पश्चात इनके पुत्र (सोमेश्वर देव प्रथम) और मधुरांतक देव के बीच सत्ता के लिए संघर्ष शुरु हो गया। कुछ समय के लिए मधुरांतक देव सत्ता पर काबिज हुए लेकिन सोमेश्वर देव इन्हे कड़ी चुनौती दे रहे थे, मधुरांतक देव का चोलों के साथ गठबंधन था वहीं सोमेश्वर देव का चालुक्यों के साथ गठबंधन था। सत्ता के इस संघर्ष में मधुरांतक देव मारा गया। इनके राजपुर अभिलेख में नरबलि के लिखित साक्ष्य मिलते हैं।

• सोमेश्वर देव (I)

सोमेश्वर देव प्रथम एक पराक्रमी राजा थे जिन्होंने मधुरांतक देव को हराकर अपना राज्य वापस पाया था। इन्होंने वेंगी, भद्रपट्टनम, उड्र, वज्र, लेम्ना, लंजी और भद्र पतन आदि क्षेत्रों को पर विजय पाई थी, इसके अलावा इन्होंने रतनपुर के कल्चुरी शासक पृथ्वीदेव प्रथम को भी हराया था। इनके पराक्रम के कारण इन्हे महाराजाधिराज, परमभट्टाराक, परमेश्वर की उपाधि प्राप्त थी। 

इस तरह से ये 6 लाख 96 गांव (कृषि योग्य भूमि) के स्वामी बन गए थे। इनकी पत्नी गंगदेवी ने 1109ई. मे बारसूर में बत्तीसा मंदिर का निर्माण करवाया। इनके काल के स्वर्ण मुद्राएं बिलासपुर से प्राप्त हुए हैं।

सोमेश्वर देव (I) का विजय अभियान

• मधुरांतक देव को हराकर अपना राज्य वापस पाया।

• उड्र (ओडिशा) विजय – यहां इन्होंने सोमवंशी शासक उद्योत केसरी महाभाव गुप्त चतुर्थ को हराया।

• वेंगी विजय – वेंगी नरेश विरचोड़ को हराया।

• लेमणा विजय – लवण, बलौदाबाजार क्षेत्र।

• लंजी विजय – बालाघाट क्षेत्र।

• वज्र विजय – वेरागढ़, महाराष्ट्र क्षेत्र।

• भद्र पतन विजय – भांडक नगर।

• रतनपुर शासक पृथ्वी देव प्रथम पर विजय।

रतनपुर नरेश पृथ्वीदेव प्रथम इस हार को सहन नहीं कर सके और उन्होंने राजकाज से दूरी बना ली। इस हार का बदला लेने के लिए इनके पुत्र जाज्जलदेव प्रथम ने चक्रकोट (बस्तर) पर हमला किया और इस युद्ध में इस बार सोमेश्वर देव की हार हुई, जाज्जलदेव ने इनको इनकी पत्नी और मंत्री(सेनापति) को बंदी बनाकर लिया। लेकिन अपनी मां गुंडमहादेवी के आग्रह के कारण इन्होंने सोमेश्वरदेव की पत्नी और मंत्री को छोड़ दिया।

• कन्हरदेव 

इनके शासनकाल के दौरान बस्तर पर एक बार फिर कल्चुरी आक्रमण हुआ। इस बार कल्चुरी शासक पृथ्वीदेव द्वितीय के सामंत जगपाल देव ने 1145ई. में यहां आक्रमण किया, इस युद्ध में कन्हरदेव की हार हुई। इनके बारे में कहा जाता है कि आक्रमण की खबर सुनने के बाद ये राजधानी छोड़कर भाग गए थे।

• हरीशचंद्र देव 

ये छिन्दक नागवंश के अंतिम शासक हुए, इनके शासनकाल के दौरान वारंगल के चालुक्य अन्नमदेव जो की काकतीय वंश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने 1324ई. मे इनपर आक्रमण किया जिसमें इनकी मौत हुई। अन्नमदेव ने इनकी पुत्री चमेली देवी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन चमेली देवी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और इस तरह से इनकी भी युद्ध करते हुए मृत्यु हुई। चमेली देवी को आज भी बस्तर के लोग अपने लोकगीतों के द्वारा याद करते हैं।

"यह वंश शैव तथा वैष्णव दोनो धर्म का उपासक था, इनके कुछ शासक शिव की उपासना करते थे और कुछ ने विष्णु की उपासना किया करते थे।"


छिंदक नागवंश के अभिलेख 

इस वंश से अबतक पांच अभिलेख प्राप्त होने की पुष्टी की जाती है 

1. एर्राकोट अभिलेख (नृपति भूषण)

2. राजपुर (जगदलपुर) अभिलेख (मधुरांतक देव)

3. कुरुसपाल अभिलेख (सोमेश्वर देव–I)

4. राजपुर अभिलेख (कन्हर देव)

5. टेमरा सती अभिलेख (हरीशचंद्र)।    


छिंदक नागवंशियों का निर्माण कार्य

इस वंश के प्रमुख निर्माण कार्य निम्न हैं

1. चद्रादितेश्वर(चन्द्रादित्य) मंदिर

2. बत्तीसा मंदिर (भगवान शिव का जुड़वा मंदिर)

3. मामा–भांजा मंदिर 

4. विशाल गणेश प्रतिमा

5. चन्द्रादित्य सरोवर 

6. नारायणपाल मंदिर 


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