गोंड कौन है?
गोंडो का रहन–सहन
मध्यम ऊंचाई के मेहनतकस एवं मिलनसार सांवले गोंड प्रकृति की गोद में रहना पसंद करते हैं।
यह स्वभाव से मस्त रहने वाले हैं जिन्हें महुआ दारू पीना खूब पसंद होता है।
अपने देवी-देवताओं को भी महुए का शराब और उसके फूल का तर्पण करते हैं।
यह लोग बकरी सुअर और मुर्गे–मुर्गियों की बलि भी दिया करते हैं।
लिंगो देव जिन्हें बड़ादेव की कहते हैं इनके इष्ट देव हैं।
इनमें मजबूत गोत्र व्यवस्था पाई जाती है इनकी कुल 750 गोत्र हैं और शादी ब्याह का कार्यक्रम इन्हीं के आधार पर होता है।
इनमें पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था है।
गोंडो का इतिहास
इतिहास में गोंड राजाओं का लिखित उल्लेख पहली बार 14 वीं शताब्दी में मिलती है और तब से लेकर 18 वीं शताब्दी तक मध्यभारत में ये नहीं है कहीं न कहीं पर राज कर रहे थे
हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ये 12 वीं शताब्दी से राज कर रहे हैं।
गोंडवाना लैंड में उस समय चार प्रमुख राज्य हुआ करते थे
1. गढ़ मंडल राज्य (जबलपुर और मंडला क्षेत्र)
2. चांदा राज्य (चंद्रपुर क्षेत्र)
3. खेरला राज्य (बेतूल क्षेत्र)
4. देवगढ़ राज्य (नागपुर और छिंदवाड़ा क्षेत्र)
इन सभी में गढ़ मंडल किंगडम सबसे ताकतवर था।
गोंड लोगों का आर्थिक जीवन
पहले के समय में यह लोग जगह बदल बदल कर खेती किया करते थे, इनके पूर्वज शिकार भी किया करते थे कंदमूल भी खाते थे।
यह लोग वनोपज भी इकट्ठा करते हैं महुआ, तेंदूपत्ता, चार, लाख इत्यादि चीजों को यह आज भी कट्ठा करते हैं।
ये लोग धान, कोदो कुटकी राई इत्यादि की फसल लेते हैं।
गोंड लोगों का पहनावा
सामान्य अवसर पर गोंड पुरुष धोती कमीज गमछा पगड़ी एवं प्रकृति से प्राप्त आभूषण जैसे कि पक्षियों के पंख प्रकृति से प्राप्त फूल वगैरह इत्यादि पहनते हैं।
गोंड महिलाएं सामान्यतः साड़ी ब्लाउज चूड़ियां सूता पट्टा बहुटा पहुंची इत्यादि तथा प्रकृति से प्राप्त आभूषण पहनती है ये गोदना भी गुदवाती है।
गोंड जनजाति के लोगों का घर
इनके घर मिट्टी से बनी होती हैं जिसमें बांस और खपरैल की छत होती है। घास फूस के भी छप्पर होते हैं, महिलाएं घर के दीवारों पर कलाकृतियां बनाती है, घर के पीछे वाले हिस्से में बाड़ी का होना अनिवार्य होता है इनके घरों में कलात्मकता झलकती है।
गोंड जनजाति में विवाह संस्कार
गोंड व्यक्ति के यहां जब शादी या कोई अन्य सामाजिक कार्य होता है तब परिवार वालों से ज्यादा सहयोग समाज वालों का होता है, शुरू से लेकर अंत तक कार्यक्रम को अच्छे से निपटाने की जिम्मेदारी इन्हीं की होती है।
रस्मों में घर वालों की व्यस्तता देखते हुए रिश्तेदार देखरेख का कार्यभार खुद ही संभाल लेते हैं।
इनमें ददीहाल एवं ननिहाल परिवारों के बीच शादी होती है।
शादियों में परिक्रमा घड़ी के विपरीत दिशा में होती है।
गोंड जनजाति में पठोनी विवाह, चढ़ विवाह, भगेली विवाह, लमसेना विवाह इत्यादि विवाह होता है।
गोंडो में मृत्यु संस्कार
गोंड लोग बरसों से जलाते भी रहे हैं और दफनाते भी रहे हैं, लेकिन समाज के कुछ जानकार दफनाना ही उचित समझते हैं।
गोंड समाज में स्त्रीयों की स्थिती
गोंड स्त्रियां जरूरत पड़ने पर जिम्मेदारी उठाने से पीछे नहीं हटती, ये महनती होती है। यह पति के साथ चलती है और उनके हर काम में हाथ बताती हैं इन्हें पति की सहचरी भी कहा जाता है
घर में जब कोई महत्वपूर्ण निर्णय लिया जाता है तब महिलाओं के साथ मिलकर सलाह मशवरा किया जाता है।
गोंड लोगों के देवी–देवता
गोंड जनजाति में अंधविश्वास
गोंड 2 प्रकार के राज गोंड और सामान्य गोंड
गोंड जनजाति का युवागृह
गोंड जनजाति के नृत्य–संगीत
गोंड जनजाति में विभिन्न अवसरों के लिए विभिन्न प्रकार के नृत्य एवं संगीत हैं और अलग–अलग नृत्य के लिए इनकी विशेष वेशभूषा है।
इनके प्रमुख नृत्य करमा, सैला, रीणा करमा, रीना सैला आदि है
गोंडों में तीन गीत कथाएं ज्यादा प्रचलित है
रामायणी, पांडायनी और गोंडवानी।
जिसमें गोंडवानी गोंड राजाओं की वीर गाथा है।
गोंडी धर्म
गोंडी संस्कृति की जानकारों के अनुसार गोंडी एक स्वतंत्र धर्म है और इनकी अपनी ही एक समृद्ध संस्कृति, भाषा और ज्ञान है।
गोंडी द्रविड़ मुल की एक भाषा है।
इनकी कुछ उप जनजातियां रावण और महिषासुर को अपने पूर्वज मानते हैं।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी गोंड जनजाति के लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
दक्षिण भारत के कोमाराम भीम, बस्तर के गुंडाधुर (भुमकाल विद्रोह) मध्यप्रदेश से राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह और ऐसे बहुत से लोग है जिन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ़ लड़कर गोंड जनजाति का मान बढ़ाया है।