राजर्षितुल्य कुल वंश को छत्तीसगढ़ का "प्रथम क्षेत्रिय राजवंश" माना जाता है जिसका शासन क्षेत्र वर्तमान रायपुर संभाग और बिलासपुर संभाग के मध्य का कुछ हिस्सा था।
यह राजवंश उत्तर भारत के गुप्त वंश, महाराष्ट्र के वाकाटक वंश और बस्तर के नलवंश का समकालिक था।
राजर्षितुल्य कुल वंश की मूलभूत जानकारी
स्थापना – 401ई. या 501ई. सन् (182 या 282 गुप्त संवत)
संस्थापक – शूरा/सूरा (प्रथम शासक)
उपाधि – महाराज
राजधानी – आरंग
राजमुद्रा – सिंह चिन्ह
अंतिम शासक – भीमसेन–II (क्योंकि इनके बाद की जानकारी नहीं मिलती)
स्रोत – आरंग ताम्रपत्र
राजर्षितुल्य कुल वंश की स्थापना और राजधानी
आरंग ताम्रपत्र के अनुसार शूरा नामक शासक राजर्षितुल्य कुल वंश के संस्थापक और प्रथम शासक थे, इसी वजह से इस वंश को शूरा वंश के नाम से भी जाना जाता है। इस वंश के शासक "महाराज" की उपाधि धारण करते थे।
इस वंश की स्थापना के संबंध में इतिहासकारों के मन में उलझन है, कुछ इसे 5वीं सदी का राजवंश मानते हैं तो कुछ इसे 6वीं सदी का राजवंश मानते हैं। दरअसल यह वंश "गुप्त संवत" का उपयोग करता था और इनके ताम्रपत्र में इस वंश की स्थापना की तिथि गुप्त संवत "182 या 282" अंकित है जो की स्पष्ट नहीं है। अतः अगर हम इसकी स्थापना तिथि गुप्त संवत 182 माने तो इसकी स्थापना 401ई. में हुई होगी और अगर इसकी स्थापना तिथि गुप्त संवत 282 माने तो इसकी स्थापना 501ई. में हुई होगी। लेकिन अधिकतर जगहों में इस वंश की स्थापना 5वीं सदी अर्थात 401ई. को ही माना गया है।
क्योंकि गुप्तों ने अपने दक्षिण विजय अभियान में दक्षिण कोसल को जीत लिया था और राजर्षितुल्य कुल वंश गुप्त संवत का उपयोग करता था इसे आधार मानकर इतिहासकार इस वंश को गुप्त वंश के अधीन मानते हैं।
आरंग शहर राजर्षितुल्य कुल वंश के राजनीति का केंद्र रही है और यही इस वंश की राजधानी थी।
राजर्षितुल्य कुल वंश के शासकों की सूची
1. शूरा (सूरा) (संस्थापक एवं प्रथम शासक)
2. दयित वर्मा–I
3. विभीषण
4. भीमसेन–I
5. दयित वर्मा–II
6. भीमसेन–II (अंतिम शासक)
भीमसेन–II का आरंग ताम्रपत्र
राजर्षितुल्य कुल वंश की जानकारी हमें आरंग ताम्रपत्र से प्राप्त होती है और इसी ताम्रपत्र में इस वंश के छः शासकों का उल्लेख है। इस ताम्रपत्र को इस वंश के छठवें शासक भीमसेन–II ने सुवर्ण नदी (सोन नदी) के किनारे से जारी किया था और इसी भव्य मौके पर इन्होंने हरिस्वामी और बोप्पस्वामी नामक दो ब्राह्मणों को भट्टपालिका नामक गांव दान में दिया था।
अब सुवर्ण नदी को लेकर भी इतिहासकारों में मतभेद है, कुछ इतिहासकार इसे जांजगीर–चांपा के निकटवर्ती सोन नाला मानते हैं तो कुछ इतिहासकार इसे अमरकंटक क्षेत्र से बहने वाली सोन नदी मानते हैं। अब क्योंकि राजा–महाराजा लोग पवित्र कार्यों को अक्सर पवित्र स्थानों पर ही किया करते थे और अमरकंटक एक पवित्र स्थल है अतः यह मान लिया गया है की उल्लेखित सुवर्ण नदी अमरकंटक क्षेत्र का सोन नदी ही है।
आरंग ताम्रपत्र का उल्लेख Archeological Survey of India के "Epigraphia Indica" पत्रिका में भी हुआ है।
राजर्षितुल्य कुल वंश और खारवेल का संबंध
कलिंग प्रशस्ति और उदयगिरि के पाली लेख में कलिंग नरेश खारवेल के संबंध में "राजर्षी वंशतुल्य कुल विनसृत" लिखा है। इस आधार पर इतिहासकार इन्हे राजर्षितुल्य कुल वंश का मानते हैं।